natural shayri in hindi | hindi shayri | latest hindi shayri
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है
दरख्तों तुम्हारा इम्तहान बाकी है
बादलों समय पर बरस जाना इस बार सूखी जमीनों पर......
किसी का मकान गिरवी है और किसी का लगान बाकी है......!!!
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किसी ने सच ही कहा था ।
की जब किताबे सड़क किनारे रख कर बिकेगी और
जूते काँच के शोरूम में तब समझ जाना के लोगों को
ज्ञान की नहीं जूते की जरुरत है।
दरख्तों तुम्हारा इम्तहान बाकी है
बादलों समय पर बरस जाना इस बार सूखी जमीनों पर......
किसी का मकान गिरवी है और किसी का लगान बाकी है......!!!
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किसी ने सच ही कहा था ।
की जब किताबे सड़क किनारे रख कर बिकेगी और
जूते काँच के शोरूम में तब समझ जाना के लोगों को
ज्ञान की नहीं जूते की जरुरत है।